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बाण माताजी का दुसरा एतिहासिक मन्दिर, श्री बौसण माताजी मंदिर इतिहास -

आइये भक्तो आज हम आप सभी को बाण माताजी के एक और इतिहास मन्दिर के बारे मे बताएंगे!

आप सभी को बाण माताजी के सबसे प्राचीन मंदिर दुर्ग चित्तौड़गढ के बारे में तो पता होगा लेकिन बाण माताजी का एक एतिहासिक मन्दिर और है, जो कि कुंभलगढ मे है।
आप को पता होगा की बाण माताजी सिसोदिया, गहलोत, गुहिल राजवंश, पुरोहित, राजपुरोहित, डाँगी,खरवड राजपूत राजवंश की कुलदेवी है! आइए आपको श्री बायण माता जी  के कुंभलगढ़ वाले एतिहासिक मन्दिर की सारी जानकारी देते है।




 • गोवर्धन सिंह जी बताते है-  रियासत काल में मेवाड़ की रियासत सुंदरचा पर खरवड राजपुतो का राज था। सुंदरचा छोटी रियासत होने के कारण साल भर का जो भी लगान लगता वो इकट्ठा करके मेवाड कि राजधानी चितौड़गढ भेजना होता था। एक बार कुछ लगान नही भेजने के कारण मेवाड कि राजधानी चित्तौड़गढ़ से आदेश आया कि अब खरवडो के हाथो मे कोई भी रियासत नही होगी। तब खरवड राजपूतो और परिहार राजपूतों मे युद्ध हुआ, जिसमे खरवड राजपूतों की सेना हार गई जब खरवड अपनी रियासत छोड़ कर उत्तर मेवाड के और जा रहे थे, तब रस्ते मे उन्हे एक "बुड्ढी औरत" दिखी जो की लकड़ी बिन रही थी। उस बुड्ढी औरत ने भाल सिंह (जो कि उनके प्रमुख थे) को  आवाज लगई औरत ने भाल सिंह को कहा कि "आज, आप पुरी सेना साथ रात यही रूको"! उनका उत्तर देते हुए भाल सिंह जी ने कहा-  "माता हम अब मेवाड छोड के जा रहे है" दुश्मन सेना हमारे पिछे पड़ी हुई है" ,तब उस औरत ने अपना रूप दिखाया जो और कोई नही बल्कि श्री बाण माताजी ही थे! बाण माँ ने भाल सिंह जी को एक तलवार देते हुए कहा कि- "जब भी में औरत से चिडि़या बन कर उड़ान भरू तब तुम दुश्मन पर हमला करना और जौ भी दुश्मन सामने आए उसे काट-काट कर इस कुए मे डालना", माँ ने एक कुए की तरफ इशारा करते हुए कहा। 



 खरवड सेना ने बिलकुल वैसा ही किया दुश्मनों को काट-काट कर कुऐ मे भरने लगी। दुश्मन सेना अधिक होने के कारण भाल सिंह जी को लगा कि अब हम नही जीत पाएंगे! वे फिर से बाण माताजी को याद करने लगे। बाण माँ ने उन्हे दर्शन दिए।अब बाण माँ ने भाल सिंह जी को एक बाँस कि लकड़ी से एक बाण (तीर) बनाकर दिया। भाल सिंह जी ने उस बाण से दुश्मन की सेना को एक ही बार मे समाप्त कर दिया।

बाण माताजी


 खरवड राजपुतो कि जीत हुई। तब सारी सेना बाण माताजी  को याद कर रही थी, पर बायण माँ ने अब उन्हे दर्शन नही दिये। दर्शन नही हुए तो सेना ने उसी कुए को (जिसमे दुश्मनों को मार कर फेका था)पत्थरों से बंद कर उसके उपर उस बाण ( जो कि बाण माँ ने भाल सिंह जी को दिया था) को खड़ा किया और वहा पर बायण माता जी आराधना कर उनकी स्थापना करी।

  


वहा पर माँ बाण शक्ति कुलदेवी बौसण माताजी के नाम सें एक मदिर बनाया गया, जो आज भी कुंभलगढ से कुछ दुरी पर स्थित है ।से कुछ दुरी पर स्थि है। 






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