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कालिका माताजी मंदिर, दुर्ग चित्तौड़गढ का सम्पूर्ण इतिहास एवं कालिका माताजी की महिमा _

कालिका माताजी मंदिर, दुर्ग चित्तौड़गढ का सम्पूर्ण इतिहास एवं कालिका माताजी की महिमा


@kalikamatachittor द्वारा कॉपीराइट की गई छवि


कालिका माताजी मंदिर चित्तौड़गढ के दुर्ग मे पूर्वी भाग व रानी पद्मिनी महल के पास स्थित है। पहले यह भागवान सुर्य का मंदिर था जिसे 8वीं शताब्दी मे सिसोदिया राजवंश के राजा बप्पारावल ने बनवाया था , लेकिन जब दुर्ग पर मुगलों ने आक्रमण किया तब उन्होंने भगवान सुर्य की प्रतिमा एवं मन्दिर को खंडित कर दिया। बहुत समय तक मंदिर इसी स्थिति मे रहा।


फिर 14 वीं शताब्दी मे महाराणा हमीर सिंह व सम्पूर्ण नगर वासीयो ने मंदिर को पूर्ण नक्काशी के साथ बनवा कर धूम-धाम से माँ भद्र कालिका की स्तुति कर, उनकी प्रतिमा स्थापित की। 16वीं शताब्दी मे महाराणा लक्ष्मणसिंह ने अखंड ज्योत को भी प्रज्वल्लित कि जो आज भी मंदिर के गर्भ गृह मे विद्यमान है।

अखंड ज्योति


 कुछ लोगो का कहना है कि राजा हमीर सिंह को माँ कालिका ने स्वप्न मे दर्शन दिए, एवं राजा हमीर सिंह ने माँ कालिका की प्रतिमा उसी स्वरूप मे बनवाई जिस स्वरूप मे माँ कालिका ने उन्हे दर्शन दिए।



लोगो का यह भी कहना है की कालिका माँ की प्रतिमा कोई गाँव से ले जाकर मंदिर मे स्थापित की गई। लेकिन यह बात प्रमाणित नही है।तभी से यह मन्दिर कालिका माताजी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कालिका माताजी को सम्पूर्ण मेवाड़ की महारानी व रक्षक माना जाता है। सम्पूर्ण राजस्थान से लोग माँ कालिका के दर्शन करने आने लगे। माता कालिका सभी भक्तो की अरज स्वीकार करने लगे। सिसोदिया राजवंश की कुलस्वामिनी श्री बाण माताजी भी चित्तौड़गढ के दुर्ग मे विराजित है। कालिका माता परिहार वंश की कुलदेवी भी है, सम्पूर्ण राजवंश अपनी इष्ट देवी कालिका माताजी एवं कुलदेवी बाण माताजी के बड़े भक्त थे।






हर रविवार को माँ कालिका को पाती लगाते आज भी हर रविवार माँ कालिका को पाती चढाई जाती है। भक्त दूर-दूर से माँ कालिका को अरजी लगाने, पाती चढाने, प्रसादी चढाने, भैंसे व बकरे की बली चढाने आते है। 




अब हम आपको कालिका माताजी के साथ विराजित अम्बे माता जी के बारे मे बताते है। जब भी राजवंश का किसी भी शत्रु के साथ युद्ध होता तब कालिका माताजी राजा के साथ युद्ध लड़ने जाया करते थे। तब मंदिर सुना ना हो जाये इसी लिए माता कालिका ने राजा को माता अम्बे की भी प्रतीमा स्थापित करने को कहा। सम्पूर्ण राजवंश व नगर वासीयो ने धूम-धाम से माँ अम्बे की भी आराधना कर उनकी प्रतिमा स्थापना करी। तभी से यह मन्दिर कालिका एंव अम्बे माताजी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।



अब हम आपको कालिका माताजी की लीला के बारे मे एक कथा सुनाते है एक बार की बात है- मंदिर मे हर रोज महाराजा भैंसे की बली चढाने आते थे। एक दिन राजा को मंदिर जाने मे थोड़ा विलम्ब हो गया। तब मंदिर मे महाराजा के पुरोहित को लगा की आज राजा नही आएगे तभी उन्होंने भैंसे की बली चढा दी। अब जब राजा को पता चला तब वह बहुत क्रोधित हुए एवं पुरोहित को मारने के लिए नग्न तलवार लेकर तुरंत निकल गऐ।


 जब पुरोहित बहुत डर गए एवं वह बली प्रसाद पर कपड़ा ढक एवं माँ कालिका से रक्षा की विनती कर माँ कालिका के गर्भ गृह मे छुप गऐ। अब जब राजा ने मंदिर मे पहुंच कर बली की थाल पर से कपड़ा हटाया तब उन्होंने देखा कि पुरी थाल थुलली (दलिया) से भरा रही है। यह चमत्कार देख पुरोहित भी चौंक गए। राजा का क्रोध शान्त हुआ एंव राजा ने पुरोहित से माफ़ी मांगी, पुरोहित ने माँ कालिका को धन्यवाद कर उनके जयघोष करे। 

क्या आप को पता है?? कालिका माताजी मंदिर के सामने एक कुंड बना हुआ है! जो आज भी वहा बना हुआ है। जब भी राजवंश का कोई भी युद्ध होता तो राजा सहित सम्पूर्ण सेना के उस कुंड का पूजन करने जाते। पूजन और माँ कालिका एवं माँ बाण की आराधना पुरी होने पर उस कुंड मे से एक दिव्य गन्धर्व निकलकर राजा को एक खड्ग (तलवार) प्रदान करते, राजा उस तलवार को धारण करने के बाद सम्पूर्ण युद्ध जीत जाते। युद्ध जितने के बाद राजा उस खड्ग को वापस उस कुंड मे डाल आते, और दुसरे युद्ध के लिए वापस तलवार लेने जाते व सम्पूर्ण युद्ध जीत कर ही लौटते। ऐसा चमत्कार बहुत दिनो तक चलता यहा! फिर एक दिन मुगल सेना ने छुप कर दुर्ग मे प्रवेश कर के उस दिव्य कुंड मे गउ माँस (गाय का माँस) डाल दिया। उस दिन के बाद से गन्धर्व कभी भी तलवार प्रदान करने नही आऐ। 


कई सालो बाद जब औरंगजेब ने दुर्ग पर आक्रमण किया तब उसने कालिका माताजी मंदिर सहित पुरे दुर्ग पर बड़ी-बड़ी तोप से आक्रमण किया। पुरा दुर्ग खंडित हो गया, परंतु कालिका माताजी मंदिर को औरंगजेब खंडित नही कर पाया।

 कालिका माताजी मंदिर अभी भी यथास्थिति स्थित है। कालिका माताजी की महिमा पुरे मेवाड़ मे फैली हुई है। 




कालिका माताजी मंदिर मे कालिका माताजी के साथ अम्बे माताजी विराजमान है। 





मन्दिर मे गणेशजी भी स्थापित है।आप को यह तो पता ही होगा की- "शिव बिना शक्ति अधूरी" इसी लिए मंदिर मे शिव परिवार भी है





 मंदिर के प्रांगण परिसर मे काल भैरव सहित 12 ज्योतिर्लिंग भी विराजमान है।


 कालिका माताजी मंदिर राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग राजकीय सुपुर्दगी श्रेणी मे आता है। 



मंदिर देवस्थान विभाग के अन्तर्गत चलता है।



 कालिका माताजी मंदिर मे हर वर्ष लाखो की भीड़ मे लोग आते है। नवरात्र मे यहा अलग ही माहौल रहता है। सुबह 4 बजे की मंगला आरती मे भी लोग दर्शन करने आते है।नवरात्र मे मन्दिर श्रद्धालुओ की भिड़ से भरा रहता है। मंदिर सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है।







04:00 AM  मंगला आरती

10:00 AM  बालभोग आरती

07:00 AM  संध्या आरती

08:00AM   शयन




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