Advertisement

शिशोदा गाँव के श्री क्षेत्रपाल भैरव जी एवं बाण माताजी का सम्पूर्ण इतिहास। Complete history of Shri Kshetrapal Bhairav ​​Ji and Baan Mataji of Shishoda Village.

 शिशोदा गाँव के श्री क्षेत्रपाल भैरव जी एवं बाण माताजी का सम्पूर्ण इतिहास।


    

शिशोदा गाँव श्रीनाथ जी(नाथद्वारा) से 17 कि.मी. दुर बसा हुआ है। यहा पर भी बाण माताजी का एक एतिहासिक मन्दिर स्थापित है। चलिए हम आप को आज शिशोदा गांव का सौभाग्यशाली इतिहास बताते है। 





गोवर्धन जी बताते है-  महाराणा लक्ष्मण सिंह सिसोदिया जब मेवाड़ का भ्रमण करने आए(एक मान्यता फतहनसे कुंभलगढ जा रहे थे)तो शिशोदा गाँव उनको अच्छा लगा उन्होंने यहा रियासत बनाने की सोची लोगो को दुर्ग बनाने का आदेश दिया। फिर किसी कारण वश दुर्ग का काम रूकवा कर उन्होने वहा माँ बाण का भव्य मंदिर बनवाया।

 




मेवाड़ क्षेत्र के क्षेत्रपाल भैरवनाथ जी का मंदिर भी यहा स्थित है। मान्यता है की सुंदरचा से श्रीमाली समाज के लोग यहा कुछ काम करने के लिए आया करते थे। उनके पास कुछ अलग कला(टोटके)हुए करते थे, उसमे एक भैरव कला भी थी।





      एक बार की बात है कुछ श्रीमाली के लोग वहा कुआ खुदाई का काम कर रहे थे, कुआ मे पानी आया तो लोग पानी लेने के आये। अचानक से लोगो की मटकीया अपने आप टुटने-फुटने लगी। लोगो ने विद्वान पुरोहितो (ब्राह्मणो)से जाचं करवाई तो यह घटना भैरव कला निकली, फिर उन ब्राह्मणो (पुरोहित व श्रीमाली) ने उस भैरव कला को उसी कुए में बांद दिया। जो मंदिर के पछे आज भी मौजुद है।




 विक्रम संवत1481 ब्राह्मण जब काम कि छुट्टी (शाम को) के बाद जब वे अपने घर पर जाने लगे तो वह भैरव (कला)को साथ मे ले जाने लगे, तबी माँ बाण ने ब्राह्मण को दर्शन दिये और भैरव नाथ जी को शिशोदा मे ही रखने का आदेश दिया। तभी से भैरव नाथ जी का मन्दिर वहा स्थापित है। आप अगर आज भी शिशोदा भैरव नाथ जी के दर्शन करने जाएगे तो आप को मन्दिर परिसर मे ही एक बड़ा कुआ दिखाई देगा, उस ही कुए मे श्री शिशोदा  भैरव नाथ जी विराजमान है। शिशोदा भैरव जी की महिमा बहुत ही फैली हुई है।





आज भी, जो शिशोदा भैरव जी को क्षेत्रपाल मानते है वह विवाह के पहले श्री शिशोदा बावजी के यहा क्षेत्रपाल पूजने जाते है। श्री शिशोदा बावजी के परचे सौ-सौ कौसो पर फैले हुए है। आप भी जिवन मे एक बार शिशोदा क्षेत्रपाल भैरव के दर्शन जरूर जाए।


 ॥जय शिशोदा सिरमौर की॥

    ॥ जय माँ बायण की ॥

\










एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ